Natasha

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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

आत्मा को खोजो भाई


बारह यात्री थे। वे एक नगर से दूसरे नगर को जा रहे थे। आगे बढ़े तो एक नदी आ गई। कोई पुल नहीं, कोई नाव नहीं। पार तो पहुँचना ही है, परंतु कैसे ?

उनमें से एक सयाना था। वह बोला "घबराओ नहीं ! एकदूसरे का हाथ थाम लो। मिलकर हम पार हो जाएँगे।"

सबने एकदूसरे के हाथ कसकर पकड़ लिये। सावधानी से नदी पार करके दूसरे किनारे जा पहुँचे। स्याना व्यक्ति बोला "अब गिनती करके देख लो, कोई नदी में तो नहीं रह गया ?"

दूसरा बोला "सबसे बुद्धिमान तू है, अब तू ही गिन।"

स्याना गिनने लगा " एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह। " स्वयं को उसने गिना ही नहीं। चौंककर बोला " हम तो ग्यारह हैं ! एक साथी कहाँ गया ? "

दूसरे ने गिना तो अपनेआप को भूल गया। इस तरह तीसरे, चौथे और बारीबारी से सभी ने ग्यारह ही गिने। रोने लगे कि एक साथी डूब गया।

तभी एक यात्री आ गया। उसने उनके रोने का कारण पूछा।

स्याने ने सारी बात कह बताई।

यात्री ने उन्हें देखते हुए मन में गिना तो वे बारह थे। उसने कहा " यदि मैं तुम्हारे बारहवे साथी को खोज दूँ, तो ? "

वे बोले " तब तो हम तुम्हें भगवान् मान लेंगे। "

यात्री बोला " तुम सब बैठ जाओ। मैं एकएक को चपत मारूँगा। जिसे चपत लगे, वह क्रम से एक, दो, तीन गिनता जाए। "

इस तरह यात्री चपत मारता गया और वे लोग एक से बारह तक गिनते गए। अंत में बोले "तुम सचमुच भगवान् हो !"

आपको इन यात्रियों पर हँसी आती है, परंतु हम स्वयं भी इसी मूर्खता के शिकार हैं। पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवें मन को तो हम पहचानते हैं, परंतु बारहवें आत्मा को हम भुला बैठे हैं। हम दुनियाभर के बखेड़े करते हैं, किन्तु आत्मा के लिए कुछ नहीं करते। ग्यारह की तृप्ति में ही डूब गया है, तभी तो मनुष्य दुःखी और अशान्त है।

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